आगरा: न्याय व्यवस्था में मानवीय हस्तक्षेप की एक मिसाल तब देखने को मिली जब 41 साल पुराने डकैती मामले में दोषी ठहराए गए लाखन सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्णतः निर्दोष घोषित कर बरी कर दिया। पैरवी के अभाव में पिछले दो महीने से जेल में बंद यह व्यक्ति गंभीर कैंसर रोग से पीड़ित है और जीवन के अंतिम चरण में पहुंच चुका था। सत्यमेव जयते ट्रस्ट की निस्वार्थ पहल से उसे न्याय मिला और 20 दिसंबर को जिला कारागार से रिहा किया गया।

1984 में लूट की घटना में आरोपी बने लाखन सिंह को 1987 में निचली अदालत ने दोषी ठहराया था। जमानत मिलने के बाद आर्थिक तंगी और परिवार के अभाव में आगे पैरवी नहीं हो सकी। पुराने आदेश के अनुपालन में दो महीने पहले उन्हें फिर जेल भेजा गया।
ट्रस्ट के ट्रस्टी रोहित अग्रवाल, दुर्गेश शर्मा और हाईकोर्ट अधिवक्ता आलोक सिंह ने निस्वार्थ भाव से केस लड़ा। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को त्रुटिपूर्ण मानते हुए दोषसिद्धि निरस्त कर दी।
जेलर नागेश सिंह और कारागार प्रशासन ने भी मानवीय सहयोग दिया। ट्रस्ट अध्यक्ष मुकेश जैन, अशोक गोयल समेत अन्य ने अधिवक्ताओं का आभार जताया। यह मामला साबित करता है कि सही साथ मिले तो देर से ही सही, न्याय जरूर मिलता है।