• “दो जून की रोटी… रोज़ की सबसे बड़ी जंग।”
• “पेट की भूख सब सिखा देती है – सम्मान, संघर्ष और संतुलन।”
• “मेहनत की रोटी सबसे मीठी होती है।”
• “जिसे तुम साधारण कहते हो, वो किसी की दिन-रात की तपस्या है।”
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🔹आचार्य सन्त कुमार भारद्वाज.. ✍️
📖 JNN: “दो जून की रोटी कमाना” — यह कहावत भारत के आम जनजीवन की उस सच्चाई को बयां करती है, जिसमें हर व्यक्ति सुबह उठकर इस मकसद से निकलता है कि वह दिन भर मेहनत करे और शाम को अपने घर लौटकर परिवार के साथ दो वक्त की रोटी साझा कर सके।
🔹 जिसे तुम दो जून की रोटी समझते हो, वो किसी के आँसुओं से भीगी हुई मेहनत की थाली है।
यह वाक्य सिर्फ भोजन की बात नहीं करता, बल्कि यह उन संघर्षों, चुनौतियों और आत्मसम्मान की भी बात करता है जो एक आम आदमी को रोज़ाना का जीवन जीने के लिए झेलने पड़ते हैं।
👉 यह कहावत हमें सिखाती है कि रोटी भी तब ही मिलती है जब हाथों में मेहनत का स्वाद हो और माथे पर ईमानदारी की चमक।
👉 यह उन लाखों मजदूरों, किसानो, दिहाड़ी श्रमिकों और छोटे दुकानदारों का प्रतिनिधित्व करती है, जो भले ही करोड़पति न हों, पर उनकी मेहनत करोड़ों की कीमत रखती है।
🔹 जिनके घर चूल्हे जलते हैं, उनके पसीने में सपनों की आंच होती है।