आगरा। यमुना नदी के तटीय गांव रहनकलां में जलदोहन की एक वृहद परियोजना ‘रेनीवैल’ को लेकर सवालों का दौर शुरू हो गया है। इस प्रोजेक्ट के तहत प्रस्तावित पांच भारी क्षमता वाले रैनीवैल्स से प्रतिदिन आठ करोड़ लीटर भूजल दोहित किया जाएगा। इसकी जानकारी सामने आने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष डॉ. मंजू भदौरिया और सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा ने परियोजना की पारदर्शिता और पर्यावरणीय प्रभाव पर गंभीर चिंता जताई है।

प्रोजेक्ट की तकनीकी योजना आईआईटी रुड़की द्वारा तैयार की गई है, जो जल संरचना अध्ययन में राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संस्था है। जिला पंचायत अध्यक्ष डॉ. मंजू भदौरिया ने सवाल उठाया कि इतनी बड़ी जलराशि के दोहन से आगरा के भूजल तंत्र और यमुना के प्राकृतिक बहाव पर क्या असर पड़ेगा, इसकी स्पष्ट जानकारी न तो जनप्रतिनिधियों को दी गई है, और न ही पब्लिक डोमेन में कोई प्रभाव आकलन रिपोर्ट उपलब्ध है।

रहनकलां गांव में बनने वाले रैनीवैल्स में से चार अनवरत जल दोहन करेंगे और एक को स्टैंडबाय रखा जाएगा। हर कुएं की गहराई 30 मीटर होगी, जहां यमुना की सीपेज और एक्यूफर से पानी पहुंचेगा जिसे हाई कैपेसिटी पंप से खींचा जाएगा। इनसे औद्योगिक इकाइयों को पानी आपूर्ति किए जाने की संभावना जताई जा रही है।

 

सिविल सोसाइटी ऑफ आगरा के सचिव अनिल शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना और असलम सलीमी ने इस योजना को लेकर डॉ. भदौरिया से उनके कैंप कार्यालय में मुलाकात की और चेताया कि यमुना के डाउनस्ट्रीम हिस्सों, एत्मादपुर, फतेहाबाद, बाह में गैर मानसून सीजन में नदी सूखने की नौबत आ सकती है।

उन्होंने कहा कि जब उटंगन और खारी जैसी इंटर-स्टेट नदियां पहले ही जल शून्य हो चुकी हैं, तब यमुना से इस स्तर पर दोहन उसकी प्राकृतिक रिचार्ज क्षमता को खत्म कर देगा।

डॉ. भदौरिया ने कहा कि वह जिला सिंचाई बंधु की अध्यक्ष हैं, लेकिन न तो सिंचाई विभाग और न ही यूपी जल निगम ने उन्हें रिपोर्ट साझा करना उचित समझा। उन्होंने संबंधित अधिकारियों से यह भी जानना चाहा कि इस दोहन से जनपद के विभिन्न विकासखंडों में ट्यूबवेल, हैंडपंप और गांवों की पाइपलाइन योजना पर क्या असर पड़ेगा।

सिंचाई विभाग अधीक्षण अभियंता तृतीय वृत्त के अंतर्गत अधिशासी अभियंता लोअर खंड और यूपी जल निगम के कार्यदायी अधिकारी अधिशासी अभियंता एहित शामुद्दीन। दोनों अधिकारियों को आईआईटी रुड़की की स्टडी रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है।

अब तक इस प्रोजेक्ट का कोई इम्पैक्ट एनालिसिस सार्वजनिक नहीं किया गया है और न ही यह बताया गया है कि नदी बहाव, भूजल स्तर, और ग्रामीण जल आपूर्ति पर इसका क्या सीधा असर होगा। इससे साफ है कि परियोजना जलविज्ञान, पारिस्थितिकी और स्थानीय जीवन प्रणाली पर प्रभाव की अनदेखी करते हुए आगे बढ़ रही है।

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