रिपोर्ट 🔹राहुल गौड [ब्यूरो चीफ-मथुरा]

मथुरा/यूपी। मथुरा-वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज और चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य के बीच हाल ही में एक विवाद सुर्खियों में है। रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज को विद्वान या चमत्कारी मानने से इनकार करते हुए खुली चुनौती दी है। उन्होंने कहा, “प्रेमानंद महाराज मेरे सामने संस्कृत का एक अक्षर बोलकर दिखाएं या मेरे द्वारा बोले गए संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में समझाएं।” यह बयान रामभद्राचार्य ने एनडीटीवी के एक पॉडकास्ट में दिया, जिसके बाद यह मुद्दा सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया।

विवाद की जड़
रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता को “क्षणभंगुर” बताया और कहा कि चमत्कार वही है जो शास्त्रों की गहरी समझ रखता हो और संस्कृत श्लोकों का सटीक अर्थ बता सके। उन्होंने यह भी कहा, “प्रेमानंद मेरे लिए बालक समान हैं। मैं उनसे कोई द्वेष नहीं रखता, लेकिन न तो मैं उन्हें विद्वान मानता हूं और न ही चमत्कारी।” रामभद्राचार्य का मानना है कि पहले केवल विद्वान ही कथावाचन करते थे, लेकिन आजकल “मूर्ख” लोग भी धर्म का प्रचार कर रहे हैं।

प्रेमानंद महाराज की लोकप्रियता
प्रेमानंद महाराज अपने सादगी भरे जीवन और राधा-कृष्ण भक्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके भजन और प्रवचन सोशल मीडिया पर वायरल होते हैं, और उनके आश्रम में विराट कोहली, राज कुंद्रा जैसी हस्तियां दर्शन के लिए आती हैं। 19 सालों से किडनी की बीमारी से जूझने के बावजूद, वे रोजाना वृंदावन की परिक्रमा करते हैं, जिसे उनके भक्त चमत्कार मानते हैं।

रामभद्राचार्य का तर्क
रामभद्राचार्य, जो तुलसी पीठ के संस्थापक और 80 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं, ने कहा कि असली चमत्कार शास्त्रीय ज्ञान और संस्कृत की समझ में निहित है। उन्होंने प्रेमानंद महाराज के चमत्कारी दावों को “मिथक” करार दिया और उनकी लोकप्रियता को भक्ति और सादगी का परिणाम बताया, न कि शास्त्रीय ज्ञान का।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
रामभद्राचार्य के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ यूजर्स ने प्रेमानंद महाराज का समर्थन करते हुए कहा कि उनकी भक्ति और सादगी ही उनकी ताकत है, जबकि अन्य ने रामभद्राचार्य के शास्त्रीय ज्ञान की सराहना की।

प्रेमानंद महाराज का जवाब
अब तक प्रेमानंद महाराज की ओर से इस चुनौती का कोई आधिकारिक जवाब सामने नहीं आया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे रामभद्राचार्य की चुनौती स्वीकार करते हैं या अपनी भक्ति के मार्ग पर बने रहते हैं।

यह विवाद धार्मिक जगत में ज्ञान और भक्ति के बीच संतुलन का सवाल उठाता है। क्या प्रेमानंद महाराज रामभद्राचार्य की चुनौती का जवाब देंगे? यह आने वाले समय में धार्मिक चर्चाओं का एक बड़ा मुद्दा बन सकता है।

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