आगरा: ताजमहल की सुनहरी सुबह आज एक आध्यात्मिक रंग में रंग गई, जब जैन मुनिश्री सौम्यसागर महाराज और मुनिश्री निश्चलसागर महाराज अपने संघ और भक्तों के साथ इस विश्व प्रसिद्ध स्मारक का अवलोकन करने पहुंचे। सूर्य की पहली किरणें ताज की श्वेत संगमरमरी दीवारों पर चमक बिखेर रही थीं, उसी समय संतों की उपस्थिति ने इस स्थल को और अधिक पवित्र बना दिया।

मुनिवरों ने ताजमहल की अद्भुत सुंदरता को निहारा और गाइड के माध्यम से इसके ऐतिहासिक तथ्यों को गहराई से समझा। उन्होंने इस स्थापत्य कला के हर पहलू का सूक्ष्म अध्ययन किया। मुनिश्री ने कहा, “भारतीय संस्कृति और इतिहास के अनेक आयाम इस स्मारक से जुड़े हैं, जो हमारे गौरवशाली अतीत की झलक प्रस्तुत करते हैं।”

मुगल काल और जैन धर्म का ऐतिहासिक संबंध

अवलोकन के बाद मुनिवर संघ ताजगंज स्थित जैन मंदिर पहुंचे, जहां श्रावक-श्राविकाओं ने उनकी मंगलवाणी का लाभ लिया। उद्बोधन में मुनिश्री ने मुगल सम्राट शाहजहां की जैन धर्म में रुचि का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि शाहजहां के नौ रत्नों में पंडित बनारसी दास जैसे जैन विद्वान शामिल थे। शाहजहां ने पंडित जी से कहा था, “भगवान को ऐसे विराजमान करना कि उनकी सीधी दृष्टि ताजमहल के गुम्बद पर रहे।”

मुनिश्री ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि ताजमहल की निकटता में स्थित जैन मंदिर को मुगलों ने कभी जीर्ण-शीर्ण नहीं किया। यह धार्मिक सहिष्णुता और पारस्परिक सम्मान का प्रमाण है, जो उस युग में भी विद्यमान था।

उपस्थित जनों में नई जिज्ञासा

इस दौरे ने भक्तों में आध्यात्मिकता और इतिहास के प्रति गर्व की भावना जगाई। सभी ने इसे जीवन का अविस्मरणीय क्षण बताया और मुनिवरों से आशीर्वाद लिया।

मौजूद लोग: नीरज जैन, विजय जैन, योगेश जैन, संजय जैन, मनोज जैन बल्लो, दीपक जैन, अभिषेक जैन, मोनू जैन, मीडिया प्रभारी शुभम जैन सहित ताजगंज जैन समाज के सदस्य।

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