आगरा/अलीगढ़: देश के सबसे बड़े मार्क्सवादी इतिहासकारों में शुमार 94 वर्षीय प्रो. इरफ़ान हबीब ने एक बार फिर इतिहास के साथ हो रही छेड़छाड़ पर कड़ा प्रहार किया है। अलीगढ़ स्थित अपने आवास पर सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के प्रतिनिधि मंडल (अनिल शर्मा, राजीव सक्सेना और असलम सलीमी) से लंबी चर्चा में उन्होंने साफ़ कहा:

“इतिहासकारों का काम तथ्यों को खोजना और साबित करना है, नया तथ्य गढ़ना नहीं। Historians must prove by establishing facts, they can’t manufacture facts.”

कांग्रेस हो या बीजेपी – सब करते आए हैं इतिहास से खिलवाड़

प्रो. हबीब ने बिना किसी दल का नाम लिए सीधा हमला बोला – “इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की प्रवृत्ति नई नहीं है। कांग्रेस के ज़माने में भी जगहों के नाम बदले गए। अब इसमें और तेज़ी आ गई है। लेकिन इतिहास तथ्यों से बनता है, झूठी कहानियों से नहीं।”

अलीगढ़ का मराठा इतिहास मिटाया जा रहा

चर्चा में सबसे दुखद बिंदु अलीगढ़ के खोते जा रहे मराठा कालीन स्मारकों का रहा। प्रो. हबीब ने बताया: “महादजी सिंधिया के समय में ही अलीगढ़ का नामकरण हुआ था। किला था, इमारतें थीं, आज सब खंडहर या ज़मींदोज़। मराठा और रियासत काल के स्मारक तेज़ी से नष्ट हो रहे हैं।”

ब्रज का दुर्लभ दस्तावेज़ी इतिहास

प्रो. हबीब ने अपनी कम चर्चित मगर बेहद महत्वपूर्ण किताब ‘मुगल काल में ब्रज भूमि: राज्य, किसान और गोसाईं’ (तारापद मुखर्जी के साथ सह-लेखन) का ज़िक्र किया। यह किताब ब्रज क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, गोसाइयों की भूमिका और मुगल शासन के प्रभाव का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज़ है।

फतेहपुर सीकरी का तेरह मोरी बांध – ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की गुहार

सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के सचिव अनिल शर्मा ने तेरह मोरी बांध के संरक्षण का मुद्दा उठाया। यह बांध फतेहपुर सीकरी संरक्षित क्षेत्र का हिस्सा है। ASI ने सिंचाई विभाग को इसे दोबारा उपयोगी बनाने की अनुमति दे दी है। प्रो. हबीब ने बताया कि अलीगढ़ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस पर शोध-पत्र ‘चाह ब चाह: द टेक्नीक ऑफ़ वाटर-लिफ्टिंग ऐट फतेहपुर सीकरी’ प्रकाशित किया है। उनका कहना था – “यह सिर्फ़ बांध नहीं, अकबर कालीन जल-प्रबंधन तकनीक का जीता-जागता सबूत है। इसे बचाना हमारी ज़िम्मेदारी है।”

पुरातत्व सिर्फ़ पर्यटन नहीं, साक्ष्य है

प्रो. हबीब ने पुरातत्व सर्वेक्षण की पुरानी किताब ‘मॉन्यूमेंटल ऐंटीक्विटीज़ ऑफ नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज़’ का ज़िक्र करते हुए कहा: “ये इमारतें सिर्फ़ पत्थर नहीं, हमारे इतिहास के साक्ष्य हैं। फुटफॉल बढ़ाना मकसद नहीं होना चाहिए, संरक्षण पहली प्राथमिकता है। यह ज़िम्मेदारी सिर्फ़ ASI या राज्य पुरातत्व विभाग की नहीं, नागरिक समाज और शोधकर्ताओं की भी है।”

अंतिम संदेश – जो बचा है, उसे बचा लो

चर्चा के अंत में प्रो. हबीब ने भावुक अपील की: “जो बचा हुआ है, उसे बचा लीजिए। हर खंडहर, हर दीवार, हर बांध हमारा साक्ष्य है। साक्ष्य खत्म हुआ तो इतिहास खत्म। और बिना सच्चे इतिहास के भविष्य अंधकार में है।”

सिविल सोसायटी ऑफ आगरा के सदस्यों ने आश्वासन दिया कि वे अलीगढ़ और आगरा-ब्रज क्षेत्र के उपेक्षित स्मारकों को बचाने के लिए निरंतर अभियान चलाएंगे।

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