आगरा। आगरा के ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते जलसंकट और ऐतिहासिक जलसंरचनाओं के महत्व पर एक महत्वपूर्ण बैठक में नए आयाम खुलकर सामने आए। सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा के सचिव अनिल शर्मा, प्रख्यात इतिहासकार प्रो. इरफ़ान हबीब से अलीगढ़–आगरा मुलाकात के दौरान इतिहास, समाज और जल-संरचना से जुड़े अहम मुद्दों पर विमर्श किया।
बैठक में विशेष रूप से तेरह मोरी बांध की उपयोगिता और वर्तमान स्थिति पर चर्चा हुई। दशकों से उपेक्षित यह ऐतिहासिक जलसंरचना अब पुनर्जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। सिविल सोसायटी के प्रयासों के कारण आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने न केवल इसे विश्वदाय स्मारक फतेहपुर सीकरी का अंतरिम भाग माना है, बल्कि इसे फंक्शनल बनाने के लिए सिंचाई विभाग को आवश्यक कार्य करने की आधिकारिक अनुमति भी प्रदान की है।
प्रो. इरफ़ान हबीब, जिनका मुगल प्रशासन, सामाजिक ढाँचे और फतेहपुर सीकरी पर विस्तृत शोध रहा है, ने बताया कि तेरह मोरी बांध केवल जल-संरचना नहीं, बल्कि 1550–1750 के बीच के सामाजिक-आर्थिक तंत्र का जीवंत दस्तावेज़ है। गौड़ीय वैष्णव मंदिरों, प्रशासनिक ढांचे और भूमि-अधिकार प्रणाली के संदर्भ में उनका शोध बृज क्षेत्र के सामाजिक अध्ययन में एक मील का पत्थर माना जाता है।
2018 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने ‘Aligarh Society of History and Archaeology (ASHA)’ के तहत तेरह मोरी बांध का विस्तृत अध्ययन ‘Chāh ba Chāh: The Technique of Water-lifting at Fatehpur Sikri’ शीर्षक से प्रकाशित किया था। इस शोध में फतेहपुर सीकरी क्षेत्र की जल-उठाने की तकनीकों और ऐतिहासिक जल प्रबंधन पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।
इस मुलाकात में सिविल सोसायटी ऑफ़ आगरा के अनिल शर्मा (सचिव), राजीव सक्सेना और असलम सलीमी भी मौजूद रहे। बैठक में यह सहमति बनी कि तेरह मोरी बांध को पुनर्जीवित कर आगरा के ग्रामीण इलाकों में जल संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस ऐतिहासिक बांध को पूरी तरह से कार्यशील बना दिया जाए, तो यह न केवल जल संरक्षण में मदद करेगा, बल्कि फतेहपुर सीकरी क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत को भी नया जीवन देगा।

