डीपफेक बने PM मोदी की चिंता की वजह, डीपफेक की कब-कैसे हुई शुरुआत, जानिए क्या है इसका इतिहास….?
डीपफेक ; आजकल एक शब्द सनसनी का पर्याय बना हुआ है. आलम ये है कि इसे लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक परेशान हैं. उन्होंने इसे लेकर गहरी चिंता जताई है. उनका मानना है कि इसकी वजह से समाज में बड़ी आशांति पैदा हो सकती है. पीएम की चिंता का सबब बने इस शब्द का नाम डीफेक हैं. जी हां, डीपफेक के कारण सियासत से सिनेमा तक सनसनी फैली हुई है. आखिर क्या है डीपफेक, कब और कैसे हुई इसकी शुरूआत, क्या है इसका इतिहास? दरअसल, डीपफेक अंग्रेजी के दो शब्दों के संयोजन से बना है. पहला, डीप और दूसरा फेक. डीप लर्निंग में सबसे पहले नई तकनीकों, खास कर जनरेटिंग एडवर्सरियल नेटवर्क जिसे जीएएन भी कहते हैं, उसकी स्टडी जरूरी है.
जीएएन में दो नेटवर्क होते हैं, जिसमें एक जेनरेट यानी नई चीजें प्रोड्यूस करता है, जबकि दूसरा दोनों के बीच के फर्क का पता करता है. इसके बाद इन दोनों की मदद से एक ऐसा सिंथेटिक यानी बनावटी डेटा जेनरेट किया जाता है, जो असल से काफी हद तक मिलता जुलता हो, तो वही डीप फेक है. साल 2014 में पहली बार इयन गुडफ्लो और उनकी टीम ने इस तकनीक को विकसित किया था. धीरे-धीरे इस तकनीक में नई-नई तब्दीलियां की जाती रहीं. साल 1997 में क्रिस्टोफ ब्रेगलर, मिशेल कोवेल और मैल्कम स्लेनी ने इस तकनीक की मदद से एक वीडियो में विजुअल से छेड़छाड़ की और एंकर द्वारा बोले जा रहे शब्दों को बदल दिया था. इस एक प्रयोग के तौर पर किया गया था.
हॉलीवुड फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता था. कई बार शूटिंग के बीच में ही कुछ कलाकारों की मौत हो जाती या किसी के पास डेस्ट की कमी होती तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. उदाहरण के लिए फिल्म ‘फास्ट एंड फ्यूरियस’ को देख सकते हैं. उसमें लीड एक्टर पॉल वॉटर की जगह उनके भाई ने भूमिका निभाई थी, क्योंकि शूट के बीच में ही उनकी मौत हो गई थी. डीपफेक तकनीक के जरिए उनको हूबहू पॉल वॉटर बना दिया गया. यहां तक कि उनकी आवाज भी पॉल जैसी हो गई. शुरू में डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल नकारात्मक तरीके से नहीं होता था. लेकिन जैसे-जैसे इस तकनीक ने तरक्की की, असली-नकली का फर्क करना भी मुश्किल होने लगा.
सिनेमा से सियासत तक, डीपफेक ने ऐसे फैलाई सनसनी
इसका परिणाम ये हुआ कि कुछ लोग इसका धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल करने लगे. यहां तक कि हॉलीवुड और बॉलीवुड एक्ट्रेस के पोर्न वीडियो बनाए जाने लगे. कई सारी पोर्न वेबसाइट पर इस तरह के वीडियो भरे पड़े हैं. लेकिन ये पब्लिक डोमेन में नहीं है, इसलिए इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई. लेकिन जब एक्ट्रेस के बोल्ड वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला गया, तब जाकर हंगामा बरपा है. इसकी पहली शिकार साउथ सिनेमा की मशहूर एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना हुई है. 5 नवंबर को रश्मिका मंदाना का डीपफेक वीडियो सामने आया था. वीडियो को देख कर लगता है एक्ट्रेस कहीं से वर्क आउट कर के आ रही हैं. लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो लोग सन्न रह गए. इसके बाद तो सिलसिला चल पड़ा.
रश्मिका मंदाना के बाद डीपफेक की अगली शिकार बॉलीवुड एक्ट्रेस कैटरीना कैफ हुईं. 7 नवंबर को फिल्म टाइगर 3 का एक सीन अचानक से सुर्खियों में आ गया. इस सीन में बॉलीवुड अभिनेत्री कैटरीना कैफ बिकिनी पहने हुए एक महिला से लड़ती हुई दिखाई दे रही हैं. कैटरीना की ये तस्वीर भी देखते ही देखते सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. हद तो तब हो गई जब इसी तरह का एक वीडियो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वायरल हो गया. 8 नवंबर को सोशल मीडिया पर गरबे का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी की तरह दिखने वाला एक शख्स कुछ महिलाओं के साथ डांडिया खेलता हुआ दिखाई देता है. हालांकि, ये डीपफेक नहीं असली वीडियो है, लेकिन उसमें पीएम मोदी नहीं हैं.
कैसे करें डीपफेक और ऑरिजिनल वीडियो के बीच फर्क?
यदि ऐसी कोई तस्वीर या वीडियो सामने आ जाए, तो ये कैसे समझें कि ये डीपफेक है या नहीं? यानी डीपफेक और ऑरिजिनल का फर्क कैसे करें? डीपफेक की पहचान करने के लिए ऐसी तस्वीरों या वीडियोज को ध्यान से देखना जरूरी है. यदि आप किसी वीडियो की जांच कर रहे हैं, तो सबसे पहले आपको उस शख्स के फेशियल एक्सप्रेस को बारीकी से देखना और समझना होगा और फिर लिप सिंक पर भी ध्यान देना होगा. फेशियल एक्सप्रेशन यानी चेहरे की भाव भंगिमाएं, जबकि लिप सिंक मतलब जो शब्द बोले जा रहे हैं, वीडियो में दिख रहे व्यक्ति के होंठों की बनावट उसी रूप में हो रही है या नहीं. इसके अलावा तस्वीरों को जूम करके भी ऐसे वीडियो और तस्वीर की सच्चाई जानी जा सकती है.
डीपफेक के जुर्म पर 3 साल तक जेल, 1 लाख तक जुर्माना
आईटी एक्ट 2000 किसी भी इंसान को उसकी प्राइवेसी को लेकर सुरक्षा प्रदानकरता है. ऐसे में यदि कोई डीपफेक वीडियो या तस्वीर किसी की मर्जी के बगैर बना कर कोई कानून तोड़ता है, तो उसके खिलाफ शिकायत की जा सकती है. इस कानून की धारा 66 डी के तहत किसी को गुनहगार पाये जाने पर उसे 3 साल तक की सजा और 1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है. आईटी एक्ट में ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की भी जिम्मेदारी तय की गई है, जिसमें किसी आदमी की प्राइवेसी को प्रोटेक्ट करना जरूरी है. ऐसे में अगर किसी प्लेटफॉर्म को ऐसे किसी डीपफेक मेटेरियल के बारे में जानकारी मिलती है, तो शिकायत मिलने के 24 गंटे के अंदर उसे हटाना उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदारी है.
डीपफेक के जरिए किसी का अपमान करने पर उस पर आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस किया जा सकता है. डेटा चोरी कर या हैकिंग कर अगर कोई डीप फेक तैयार किया जाता है, तो पीड़ित आईटी एक्ट के तहत शिकायत कर सकता है. इसी तरह किसी सामग्री की चोरी होने पर कॉपी राइट एक्ट 1957 के तहत गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. इसके अलावा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम यानी कंज्यूमर्स प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के तहत भी पीड़ित इंसान अदालत में अपनी फरियाद लेकर जा सकता है. इस लिहाज से देखें तो डीप फेक से मुकाबले का कानून हथियार भारत में मौजूद है. बस कानून का उल्लंघन किए जाने पर अपने अधिकार के मुताबिक उससे निपटना जरूरी है.