फिरोजाबाद: जिले के फरिहा चौराहे पर शुक्रवार रात एक दृश्य सामने आया जिसने एक बार फिर वर्दी की जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। वर्षों से अपने-अपने ठेले पर बादाम शेक और मोमोज बेच रहे सूर्यप्रकाश तिवारी और मयंक को सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने दरोगा की धमकी पर झुकने से इनकार किया।

दारोगा प्रेम शंकर ने आते ही न केवल गाली-गलौज की, बल्कि तीनों ठेलेवालों को लात-घूंसों से पीटा। कुछ मिनटों में ही खून से सने चेहरे, टूटती हड्डियां और भीड़ में सन्नाटा दिखाई देने लगा — सिवाय उन लोगों के जो इस घटना को अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर रहे थे।

वीडियो वायरल हुआ, तो ‘न्याय’ हरकत में आया

घटना के बाद कोई एफआईआर नहीं, कोई मेडिकल नहीं, कोई इंसाफ नहीं — बल्कि थाना प्रभारी गीतम सिंह ने शिकायत सुनने की जगह “समझौते” की सलाह दी। यही नहीं, कुछ दिन पहले यही दारोगा एक हिस्ट्रीशीटर के साथ खड़ा था, जो एक फरियादी को धमका रहा था — और दारोगा मूक दर्शक बना हुआ था।

जब पिटाई का वीडियो रात में वायरल हुआ, तभी एसएसपी सौरभ दीक्षित ने एक्शन लिया और दारोगा को लाइन हाजिर कर जांच के आदेश दिए। सीओ जसराना अमरीश कुमार ने कार्रवाई की पुष्टि की है।

पुलिस की गिरती साख और दमनकारी चेहरा

पुलिस का यह रवैया isolated incident (अलग-थलग मामला) नहीं है।
बल्कि यह एक सिस्टमेटिक विफलता का हिस्सा है, जिसमें –

  • गरीब को अपनी रोज़ी पर खड़ा रहना भी ‘अपराध’ लगता है

  • पुलिस की प्राथमिकता ‘सत्ता के हितों’ की रक्षा, न कि जनता के अधिकार बनती जा रही है

  • और जवाबदेही सिर्फ कैमरे के डर से आती है, कानून के डर से नहीं

न्याय की दिशा में अगला कदम क्या होगा?

  • क्या इन ठेला वालों को न्याय मिलेगा या उन्हें चुप करा दिया जाएगा?
  •  क्या लाइन हाजिरी के बाद दारोगा पर वास्तविक अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी?
  • क्या थाना प्रभारी पर भी कार्रवाई होगी, जिसने शिकायत दबाने की कोशिश की?

निष्कर्ष:

फिरोजाबाद की यह घटना किसी ठेले वाले की लड़ाई नहीं है, यह एक सामाजिक चेतना की परीक्षा है। अगर सड़क पर मेहनत से पेट पाल रहे नागरिक को वर्दीधारी लात-घूंसे से कुचल सकता है और सिस्टम चुप बैठा रह सकता है — तो यह लोकतंत्र नहीं, डर का तंत्र है।

अब समय है कि लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक सीमित न रह जाए, बल्कि थाने, चौराहे और फुटपाथ तक भी पहुंचे।

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