आगरा। भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष श्याम भदौरिया को शक है कि उन्हें वैध बताकर 20 साल पहले जो पिस्टल बेची गई थी वह भी अवैध है। इस संबंध में उन्होंने जगदीशपुरा थाने में तहरीर दी है। पिस्टल की फोरेंसिक जांच की मांग की है।
एसटीएफ के इंस्पेक्टर यतींद्र शर्मा को जांच के दौरान पता चला था कि पूर्व जिला अध्यक्ष श्याम भदौरिया के पास भी एक विदेशी पिस्टल है। जो उन्होंने आरोपित भूपेंद्र सारस्वत के पिता शिव कुमार सारस्वत से खरीदी थी। एसटीएफ इंस्पेक्टर ने उनसे कहा कि पिस्टल बेचने वाले से दस्तावेज मांग लें। उनके साथ भी धोखा हुआ है। श्याम भदौरिया के अनुसार उन्होंने शिव कुमार सारस्वत और उनके बेटे भूपेंद्र सारस्वत से पिस्टल के मूल कागजात मांगे। उन्हें नहीं दिए गए।
आरोपियों ने हर बार कोई न कोई बहाना बना दिया। यह देख उन्हें शक हुआ। जब उन्हें जानकारी हुई कि एसटीएफ की जांच रिपोर्ट के आधार पर नाई की मंडी थाने में मुकदमा दर्ज हुआ है तो उन्होंने भी मुकदमा लिखाने का फैसला लिया। श्याम भदौरिया ने बताया कि उन्होंने जगदीशपुरा थाने में तहरीर दी है। श्याम भदौरिया अकेले ऐसे नहीं है जिन्होंने गैंग के सदस्यों के माध्यम से पिस्टल खरीदी थी। कई और लोग हैं जिनके पास विदेशी पिस्टल हैं। आशंका जताई जा रही हैं कि यह सभी विदेशी पिस्टल अवैध हैं।
इधर एसटीएफ एक बार फिर उस लोकेश शर्मा की तलाश कर रही है जिसे मार्च 2017 में शास्त्रीपुरम से पकड़ा था। शास्त्रीपुरम में आगरा के इतिहास की पहली आधुनिक हथियारों की फैक्ट्री पकड़ी गई थी। फैक्ट्री संचालक के तार शस्त्र विक्रेताओं से जुड़े हुए थे। फैक्ट्री में पिएट्रो बेरेटा, स्टार, बैवले पिस्टल तैयार की जाती थीं। लोकेश शर्मा के पिता पहले शस्त्र विक्रेताओं के यहां शस्त्र मरम्मत का काम किया करते थे। उन्होंने बेटे को यह हुनर सिखाया था। लोकेश एमएससी गणित था। कोचिंग चलाया करता था। सालों से इस अवैध धंधे में लिप्त था। उस दौरान पुलिस ने दावा किया था कि लोकेश और उसके गैंग के सदस्य सैकड़ों अवैध पिस्टल बेच चुके हैं। एसटीएफ को आशंका है कि शहर में बेची गईं पिस्टलों के तार इसी लोकेश शर्मा से जुड़े निकल सकते हैं। लोकेश की दोस्ती नाई की मंडी थाने में दर्ज हुए मुकदमे के आरोपियों से थी।
विशाल भारद्वाज की तहरीर पर एक और मुकदमा दर्ज
विशाल भारद्वाज ने जब इस मामले की मुख्यमंत्री और एसटीएफ से शिकायत की थी तो उन्हें जेल से धमकी दिलाई गई थी। एसटीएफ ने आगरा पुलिस को मुकदमा दर्ज करने के लिए पत्र लिखा था। इंस्पेक्टर सिकंदरा नीरज शर्मा ने मुकदमा दर्ज नहीं किया। बुधवार को अधिकारियों ने उन्हें मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए। इंस्पेक्टर ने पीड़ित विशाल भारद्वाज को अपने पास बुलाया और यह कहा तहरीर नहीं मिल रही है। उनसे तहरीर लेकर एफआईआर की कॉपी दी। इसमें भूपेंद्र सारस्वत, पत्रकार शोभित चतुर्वेदी, सोनू गौतम और डॉक्टर अमित नामदज हैं।
इधर विशाल भारद्वाज को अभी भी आगरा पुलिस पर भरोसा नहीं है। उसका कहना है कि आगरा पुलिस से तो उसने पूर्व में कई बार गुहार लगाई। हर बार उसे ही फंसा दिया जाता था। उसके साथ ठगी हुई। उसने प्रार्थना पत्र दिया। जांच के आदेश हुए। उसी रात बिना जांच उसके खिलाफ सिकंदरा थाने में धोखाधड़ी का मुकदमा हो गया। यह मुकदमा किसने लिखाया। इसकी भी जांच होनी चाहिए। आखिर वह कौन था। जिसके आगे नियम और कायदे कानून ताक पर रखे गए। इतना ही नहीं तत्कालीन अपर पुलिस आयुक्त ने उसके प्रार्थना पत्र पर जगदीशपुरा थाने में मुकदमे के आदेश किए। प्रार्थनापत्र थाने पहुंचा। आरोपित पक्ष के प्रार्थना पत्र पर भी मुकदमे के आदेश करा दिए गए।
पहली बार ऐसा हुआ जब वादी और प्रतिवादी दोनों के प्रार्थना पत्र पर मुकदमे के आदेश हो गए। अधिकारी को गुमराह करके किसने आदेश कराए थे। इतना नहीं उसके खिलाफ एक और फर्जी मुकदमा लिखाया गया। उसके प्रार्थना पत्र जांच में ही अटके रह जाते थे। विपक्षी के प्रार्थना पत्र पर मुकदमे से पहले ही पुलिस के उसके पास फोन आना शुरू हो जाते थे। उसे जेल भेजने की धमकी दी जाती थी। अवैध हथियार और शस्त्र लाइसेंस की शिकायत उसने पहले प्रशासन में की थी। आगरा पुलिस को भी प्रार्थना पत्र दिया था। दोनों मामले दबा दिए गए। उसने हारकर एसटीएफ की शरण ली थी। एसटीएफ में भी मामला दबाने के लिए हर संभव प्रयास किए गए। विशाल भारद्वाज का आरोप है कि विपक्षियों की पैरवी एक ही व्यक्ति करता था। वह खुलेआम कहता था कि चाहें जिसके पास चला जाए कोई नहीं सुनेगा। ऐसा ही होता था।